राजभवन उद्यान
राजभवन में कई उद्यान हैं, जिनका नाम प्रेरणादायी और प्रख्यात व्यक्तियों के नाम पर रखा गया है। विशाल लॉन, आकर्षक फव्वारे और मौसमी फूलों का सुंदर संग्रह इन उद्यानों की पहचान हैं।
राजभवन में कई उद्यान हैं, जिनका नाम प्रेरणादायी और प्रख्यात व्यक्तियों के नाम पर रखा गया है। विशाल लॉन, आकर्षक फव्वारे और मौसमी फूलों का सुंदर संग्रह इन उद्यानों की पहचान हैं।
परिसर में कुछ खूबसूरत उद्यान और फलों के बगीचे हैं। अशोक उद्यान, मुख्य लॉन, भी सबसे बड़ा उद्यान है और इसमें सौ से ज़्यादा किस्म के गुलाब हैं। मूर्ति उद्यान, जिसका नाम एक लड़की की पुरानी मूर्ति के नाम पर रखा गया है, एक और विशाल उद्यान है। बुद्ध उद्यान, जिसका नाम भगवान बुद्ध के नाम पर रखा गया है, में एक सुंदर परिदृश्य और एक ग्रीन हाउस है।
फूलो झानो गार्डन अपने संगीतमय फव्वारों, जवाहर फुहारों के लिए प्रसिद्ध है।
मुख्य भवन के पिछवाड़े स्थित लिली तालाब का उपयोग राज्यपाल अक्सर शाम की सैर के लिए करते हैं।
महात्मा गांधी औषधि उद्यान राजभवन के दक्षिण की ओर है। इस उद्यान के बीच में एक सुंदर फव्वारा है। उद्यान में औषधीय पौधों, मसालों, जड़ी-बूटियों और आदिवासी लोगों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली कुछ बहुत ही प्रभावशाली स्थानीय औषधीय जड़ी-बूटियाँ का अच्छा संग्रह है।
2003 में नक्षत्र वन नामक एक नया उद्यान जोड़ा गया।
राजभवन के बगीचों में हरे-भरे लॉन, रास्ते, तरह-तरह के मौसमी फूलों की क्यारियाँ, फव्वारे, बेंच और लाइटें हैं। इसका अपना किचन गार्डन भी है जो घर और उसके कर्मचारियों की ज़रूरतों को पूरा करता है। अतिरिक्त उपज को रांची के कुछ अनाथालयों और वृद्धाश्रमों में भेज दिया जाता है।
राजभवन के बगल में श्री गुरु गोविंद सिंह वाटिका नामक एक नया उद्यान जोड़ा गया है।
माननीय राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू द्वारा परिकल्पित झारखंड के स्वतंत्रता सेनानियों की प्रतिमाओं से सुसज्जित ‘मूर्ति गार्डेन’ का उद्घाटन आज राज भवन में माननीय राज्यपाल श्री संतोष कुमार गंगवार की गरिमामयी उपस्थिति में किया गया। इस ‘मूर्ति गार्डेन’ में युगपुरुष स्वामी विवेकानंद के अतिरिक्त झारखंड के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी गया मुंडा, जतरा टाना भगत, तेलंगा खड़िया, नीलांबर-पीतांबर, सिदो-कान्हू, तिलका मांझी, दिवा-किसुन, वीर बुधू भगत के अतिरिक्त परमवीर चक्र विजेता अल्बर्ट एक्का की प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं।
स्वामी विवेकानंद
जन्म- 12 जनवरी 1863
मृत्यु-04 जुलाई 1902
‘उतिष्ठित जाग्रत प्राप्य वरात्रिबोधत’
गया मुण्डा
गया मुंडा का जन्म खूँटी जिला के ऐटकीडीह गाँव में हुआ था। गया मुंडा, ‘मुंडा उलगुलान’ के प्रधान सेनापति थे। सरदारी आंदोलन में भी इनकी सक्रिय भूमिका थी। गया मुडा की गिरफ्तारी राँची के तत्कालीन उपायुक्त स्ट्रीटफील्ड ने किया था। गया मुंडा और उनके पुत्र सानरे मुंडा को ऐटकीडीह में फाँसी दी गई।
जतरा टाना भगत
(सितंबर 1888 -1916)
जतरा भगत उर्फ जतरा उराँव का जन्म सितंबर, 1888 में झारखण्ड के गुमला जिला के विशुनपुर थाना के चिंगरी नवाटोली गाँव में हुआ था। 1912-14 में उन्होने ब्रिटिश राज और जमीदारों के खिलाफ अहिंसक असहयोग आंदोलन छेड़ा। आज भी टाना भगत आदिवासियों की दिनचर्या राष्ट्रीय ध्वज के नमन से शुरू होती है। जतरा भगत का देहान्त 1916 में हुई थी।
तेलंगा खड़िया
(9 फरवरी 1806 -23 अप्रैल 1880)
झारखण्ड के गुमला से कुछ किलोमीटर की दूरी पर बसे मुरगू गाँव में 9 फरवरी 1806 में तेलंगा खड़िया का जन्म हुआ। किसान होने के साथ-साथ वे अस्त्र-शस्त्र चलाना भी जानते थे। उन्होंने 1850 -1860 के दौरान छोटानागपुर क्षेत्र में ब्रिटिश राज के खिलाफ विद्रोह का नेतृत्व किया था। 23 अप्रैल 1880 को एक ब्रिटिश एजेंट ने उनके प्रशिक्षण अखाड़े के पास घात लगाकर हमला किया, उन पर गोलियां चला दी और उनकी शहादत हो गई ।
नीलाम्बर-पीताम्बर
(1859)
अक्टुबर 1857 में लातेहार जिले के वीर सपूत नीलाम्बर और पीताम्बर ने लगभग 500 आदिवासियों का नेतृत्व कर क्षेत्र में मौजुद अंग्रेजों के समर्थकों पर हमला किया था। विद्रोही आदिवासियों ने पलामू किले पर कब्जा कर गुरिल्ला युद्ध किया। 1859 में ब्रिटिश सेनाओं ने विद्रोह को दबा दिया, भाइयों को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें लेस्लीगंज में फाँसी दे दी।
सिद्धू – कान्हू
(सिद्धू -1815-1855, कान्हू-1820-1855)
संथाल परगना के दो वीर भाई, जिन्हें हम सिद्धू – कान्हू मुर्मू के नाम से जानते हैं, अंग्रेजों के आधुनिक हथियारों को अपने तीर-धनुष के आगे झुकने पर मजबूर कर दिया था। सिद्धू -कान्हू ने 1855-56 में ब्रिटिश सत्ता एवं शोषण के खिलाफ एक विद्रोह की शुरूआत की जिसे ‘हुल आंदोलन’ के नाम से जाना जाता है। सिद्धू को अगस्त 1855 को पंचकटिया में बरगद के पेड़ पर फाँसी दी गई जबकि कान्हू को भोगनाडीह में फाँसी दी गई।
तिलका मांझी
(1750 -1785)
अमर शहीद तिलका मांझी खूँखार पहाड़िया लड़ाकों में सर्वाधिक लोकप्रिय थे। इन्हें ‘जबड़ा पहाड़िया’ के नाम से भी जाना जाता है। इन्होंने सन् 1778 ई० में रामगढ़ कैम्प को मुक्त कराया एवं 1784 ई. में क्लीवलैंड (क्लेक्टर, भागलपुर) को मार गिराया। 1785 ई० में इन्हें फाँसी दी गई। कृतज्ञ राष्ट्र इन्हें “आदि-विद्रोही” के रूप में स्मरण करता है।
दिवा-किसुन
(1820)
दिवा और किसुन सोरेन, जो रिश्ते में मामा और भांजा थे, झारखण्ड के प्रमुख विद्रोहों में से एक दिवा किसुन विद्रोह के नायक थे। 1872 में उन्होंने आदिवासियों को अंग्रेजों के खिलाफ लामबंद किया और कर अधिरोपण का विरोध किया। अकाल के दौरान राजा की निष्क्रियता के बाद, उन्होंने लोगों की मदद की और ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ विद्रोह किया। अंततः उन्हें पकड़ लिया गया और सरायकेला जेल में फाँसी दे दी गई।
वीर बुधू भगत
( 17 फरवरी 1792-13 फरवरी 1832)
झारखण्ड के एक उराँव आदिवासी क्रांतिकारी, वीरबुधू भगत ने 19वीं सदी में अंग्रेजी शासन के खिलाफ ‘कोल विद्रोह’ का नेतृत्व किया। उन्होंने अंग्रेजी राजस्व नीतियों के विरुद्ध एक बड़ा संगठन बनाया। 13 फरवरी 1832 को कैप्टन इम्फे के खिलाफ लड़ते हुए बुधू भगत को अंग्रेजों ने पकड़ लिया और वे वीरगति को प्राप्त हुए।
अल्बर्ट एक्का
(27 दिसंबर 1942 – 3 दिसंबर1971)
गुमला के लांस नायक अल्बर्ट एक्का एक भारतीय सैनिक थे उन्हें 1971 के भारत- पकिस्तान युद्ध के दौरान गंगासागर की लड़ाई में वीरगति प्राप्त हुई थी। शत्रु के सामने अदम्य साहस का प्रदर्शन करने के लिए मरणोपरांत उन्हें भारत के सर्वोच्च सैन्य सम्मान, परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
राजभवन उद्यान हर साल जनवरी-फरवरी के महीने में जनता के लिए खुले रहते हैं, जिस दौरान बड़ी संख्या में लोग उद्यान देखने आते हैं। राजभवन परिसर को स्कूली बच्चों के लिए भी खोला गया है, जिन्हें परिसर और उद्यानों का भ्रमण कराया जाता है। वर्ष 2024 के दौरान 2,70,530 (दो लाख सत्तर हजार पांच सौ तीस) लोग उद्यान देखने राजभवन आए।