बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, रांची के 42वें स्थापना दिवस समारोह के अवसर पर माननीय राज्यपाल – सह – कुलाधिपति, झारखण्ड का संबोधन :-
प्रदेश के किसानों के तीर्थ स्थल बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के स्थापना दिवस समारोह में मुझे आप सभी के बीच सम्मिलित होकर अपार खुशी है ।
मुझे खुशी है कि राज्य में स्थापित इस कृषि विश्वविद्यालय का शिक्षा, अनुसंधान एवं प्रसार माध्यमों से राज्य के कृषि विकास में उल्लेखनीय योगदान रहा है। विश्वविद्यालय राज्य में कृषि के विकास की दिशा में निरंतर तकनीकी मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु प्रयासरत है।
तीन महाविद्यालयों के साथ वर्ष 1981 में स्थापित इस विश्वविद्यालय में वर्तमान में कुल ग्यारह महाविद्यालय कार्यरत है I विगत 4-5 वर्षो में विद्यार्थियों की संख्या में चार गुणा से अधिक बढ़ोतरी हुई है।
इस विश्वविद्यालय से वर्ष 2021-22 में कृषि, पशु चिकित्सा एवं पशुपालन तथा वानिकी विषयों में 316 विद्यार्थियों को स्नातक डिग्री मिली। करीब 64 विद्यार्थियों ने विभिन्न विषयों में पी०जी० एवं पी०एच०डी० की उपाधि प्राप्त की।
विश्वविद्यालय अधीन कार्यरत तीन नये कृषि महाविद्यालयों तथा डेयरी प्रौद्योगिकी एवं मात्स्यिकी विज्ञान महाविद्यालयों के विद्यार्थियों को पहली बार स्नातक डिग्री प्रदान की गईI मुझे जानकारी दी गई कि विश्वविद्यालय के स्नातक, पी०जी० एवं पी०एच०डी० पाठ्यक्रमों में 1450 से अधिक विद्यार्थी अध्ययनरत हैं।
इस वर्ष उद्यान एवं कृषि अभियांत्रिकी महाविद्यालयों के विद्यार्थियों को भी स्नातक डिग्री प्राप्त करने का अवसर मिलने वाला है। हाल के वर्षो में विश्वविद्यालय के नये एवं पुराने महाविद्यालयों के विद्यार्थियों द्वारा राष्ट्रीय स्तर की विभिन्न प्रतियोगिताओं में अपार सफलता मिलना बेहद गौरव का विषय है।
इस विश्वविद्यालय को विगत दो वर्षो में राष्ट्रीय स्तर के कृषि विश्वविद्यालयों के आई.सी.ए.आर. रैंकिंग में क्रमश: 60वाँ एवं 58वाँ स्थान मिलाI इसके लिए कुलपति एवं समस्त विश्वविद्यालय परिवार को बधाई देता हूँI उम्मीद करता हूँ कि विश्वविद्यालय के आई.सी.ए.आर. रैंकिंग में इस वर्ष सुधार देखने को मिलेगा।
बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के शोध तकनीकों से राज्य कृषि को नई दिशा मिली है और आशा करता हूँ कि राज्य को कृषि के क्षेत्र में अग्रणी बनाने की दिशा में विश्वविद्यालय तत्परता से कार्य करेगा।
झारखंड एक कृषि प्रधान राज्य है। यहाँ की 70 प्रतिशत से अधिक आबादी गाँवों में है एवं कृषि ही उनके आजीविका का मुख्य साधन है। यहाँ के किसानों को कैसे उनकी फसल एवं उपज का उचित मूल्य मिले, जिससे उनकी आय में वृद्धि हो, इस दिशा में कृषि विश्वविद्यालय को सोचना होगा और पहल करनी होगी।
हमारे वैज्ञानिक किसानों को वर्षा जल संचयन के प्रति प्रेरित करें। हमारे किसानों को इसके प्रति जागरुक होना आवश्यक है। हमारे कृषि विश्वविद्यालय को हमेशा राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में किसानों की समस्याओं के समाधान हेतु प्रयत्नशील रहना चाहिये ताकि किसानों के जीवन-स्तर में सुधार हो।
मैं भी एक किसान परिवार से हूँ और किसानों की समस्याओं को भली-भाँति समझता हूँ, उनकी परेशानियों से अवगत हूँ। मैं चाहता हूँ कि राज्य के किसान आत्मनिर्भर बने और इसके लिए इस विश्वविद्यालय को प्रयत्नशील रहना होगा।
हमारे वैज्ञानिकों को किसानों के बीच खेतों में जाना होगा तथा कौन-सा भू-भाग किस प्रकार की खेती एवं फसल के लिए बेहतर होगा, इसकी जानकारी किसानों को उपलब्ध करानी होगी, तभी “लैब टू लैंड” की अवधारणा पूरी तरह से सफल होगी। किसानों का विकास और उनकी खुशहाली में ही देश की खुशहाली है।
आप लोगों को कम कृषि योग्य भूमि रहने पर उन्हें बागवानी, मछलीपालन, मुर्गीपालन आदि से जोड़ने की दिशा में भी गंभीरतापूर्वक ध्यान देने तथा सोचने की जरूरत है।
मुझे बताया गया कि आई.सी.ए.आर. के सौजन्य से संचालित विभिन्न अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना के शोध कार्यक्रमों तथा जनजातीय उपयोजना कार्यक्रमों के तकनीकी हंस्तांतरण से राज्य के किसानों को लाभ हो रहा है और उनके आय सृजन में बढ़ोतरी हो रही है। यह खुशी की बात है।
जनजातीय बहुल इस क्षेत्र में स्थापित बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में अपार क्षमता एवं संभावनाएँ है, जिसे हाल के वर्षो में विश्वविद्यालय ने साबित किया है I विगत दो वर्षो में विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने राज्य के किसानों के हित में स्थानीय परिवेश के उपयुक्त विभिन्न फसलों के दर्जनों उन्नत किस्मों को विकसित किया है, जिसे स्टेट वेरायटल रिलीज़ कमिटी एवं सेंट्रल वेरायटल रिलीज़ कमिटी से अनुमोदन मिला I उम्मीद करता हूँ कि विश्वविद्यालय एवं राज्य सरकार के इस प्रयास से प्रदेश के अधिकाधिक किसानों को लाभ मिलेगा I
पहली बार विश्वविद्यालय को औषधीय दवा बिरसीन को पेटेंट मिला। माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मन की बात कार्यक्रम में विश्वविद्यालय द्वारा देवरी गाँव में स्थापित एलोवेरा विलेज की चर्चा की और आदिवासी महिला किसानों के कार्यों की सराहना की। विश्वविद्यालय द्वारा संग्रहित गिलोय जर्मप्लाज्म को राष्ट्रीय पहचान मिली। प्रसन्नता है कि विगत वर्ष जैविक सब्जी आधारित एकीकृत कृषि प्रणाली के विकास की दिशा में सराहनीय प्रयास किया गया ।
राज्य के बहुतायत किसानों के आजीविका का पशुपालन प्रमुख साधन रहा है। विश्वविद्यालय द्वारा विकसित संकर मुर्गी नस्ल झारसिम एवं संकर सूकर नस्ल झारसुक तथा बकरी के ब्लैक बंगाल नस्ल सुधार कार्यक्रम राज्य के किसानों की आजीविका एवं पोषण सुरक्षा में उपयोगी साबित हो रही है। पशुचिकित्सा वैज्ञानिकों द्वारा चिकित्सा शिविर, टीकाकरण, क्लिनिकल काम्प्लेक्स में सभी पशुओं की जाँच एवं चिकित्सा तथा प्रशिक्षण कार्यक्रमों से प्रदेश के बहुतायत किसानों को लाभ मिल रहा है।
खुशी है कि विश्वविद्यालय द्वारा केंद्र एवं राज्य सरकार के सहयोग से प्रसार कार्यक्रमों एवं रणनीतिक कार्यकलापों से कृषि प्रसार कार्यक्रमों को तेजी से अमल में लाया जा रहा है। फार्मर्स फर्स्ट प्रोग्राम में विभिन्न तकनीकी हस्तक्षेप, अभिसरण एवं गृह वाटिका कार्यक्रमों ने सफलता की गाथा प्रदर्शित की है I कृषि विज्ञान केन्द्रों द्वारा मृदा स्वस्थ्य प्रबंधन तथा पारस्परिक बीज उत्पादन कार्यक्रमों में किसानों की सहभागिता से किसान उन्नत बीज उपलब्धता का लाभ उठा रहे हैं।
कृषि विज्ञान केन्द्रों द्वारा जिला स्तर पर क्षमता निर्माण के तहत युवक-युवतियों को स्वरोजगार आधारित नियमित प्रशिक्षण, किसानों के खेतों में तकनीकी परीक्षण से तकनीकों को बढ़ावा, अग्रिम पंक्ति प्रत्यक्षण से उत्पादन एवं उत्पादकता को बढ़ावा तथा अन्य कृषि प्रसार गतिविधियों से प्रदेश के बहुतायत किसानों की कार्यक्षमता तथा कौशल विकास को काफी बल मिल रहा है I
हमारा मानना है कि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों को उपयुक्त समस्यायों पर केन्द्रित अधिकाधिक अनुसंधान से किसानों के हित में लाभकारी तकनीकी विकसित करने की दिशा में लगातार प्रयास करनी होगी, ताकि विश्वविद्यालय के कार्यकलापों का सही लाभ राज्य की आबादी को मिल सके I
जय हिन्द! जय झारखण्ड!